संस्थापक

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संस्थापकइफा अकेडमी (इंडिया), 05/02/2022

क़ाज़ी मुजाहिदुल इस्लाम क़ासमी

 

ज़मीन की सतह पर कुछ ऐसी क्रांतिकारी हस्तियां पैदा होती हैं जिनका जीवन मानवता के लिए दया और भलाई की निशानी होती है। जिनसे ज्ञान व तर्क-वितर्क के चश्मे फूटते हैं और सदियों तक विधार्थी एवं ज्ञान प्रेमी अपनी प्यास बुझाने के लिए इनके विचारों एवं चिन्तन से लाभाविन्त होते रहते हैं। यूं यह सिलसिला जारी रहता है, वास्तव में ये हज़रात ऐसी छाप छोड़ आते हैं कि इनको भूलना आसान नहीं रहता, ऐसे चमकते सितारों को इतिहास के पन्ने छिपा नहीं सकते, यूं दीने हक़ के सरफरोश अपने अपने हालात के अनुसार विभिन्न मैदानों में महत्वपूर्ण सेवाएं अंजाम देते रहते हैं। इन्हीं महान हस्तियों में एक नाम क़ाज़ी मुजाहिदुल इस्लाम क़ासमी (रह0) का है। जिन्होंने धार्मिक क्षेत्र के मैदान में बहुत बड़ी सेवाएं दी हैं। आप (रह0) फ़िक़्ह के विशेषज्ञ थे और कज़ा के विषय में चिन्तित रहते थे, नीचे के पैराग्राफ में क़ाज़ी मुजाहिदुल इस्लाम क़ासमी (रह0) के विषय में संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जाता हैः

क़ाज़ी मुजाहिदुल इस्लाम क़ासमी (रह0) का जन्म सन 1936 (1355हि0) में हिन्दुस्तान की ज़मीन ज़िला दरभंगा के मशहूर ख़ानदान में हुआ था। आप (रह0) के पिता मौलाना अब्दुल अहद क़ासमी आलिमे दीन लेखक थे और शैख़ुल हिन्द मौलाना महमूद हसन (रह0) के शार्गिदों (शिष्यों) में से थे। सन् 1954 ई0 (1930 हि0) में मदरसा देवबन्द से अच्छे नम्बरों के साथ सफलता हासिल की। उसके बाद कभी-कभी पढ़ाने के काम में व्यस्त रहे, और लम्बे समय तक बिहार में मदरसा अहमदिया मधुबनी में शैख़ुल हदीस के पद पर कार्यरत रहे।

क़ाज़ी साहब (रह0) का जन्म ज्ञानी व धार्मिक ख़ानदान में हुई, ज्ञान एवं चिन्तन रखने वाले पिता की देखरेख में परवरिश पाने से आप (रह0) में सज्जनता, धार्मिक विवेकशीलता, ज्ञान की इच्छा एवं सद्चरित्र पैदा हुआ। जिसका प्रभाव आप (रह0) के व्यक्तित्त्व एवं चरित्र में नुमायातौर पर दिखाई देता है।

शिक्षाः

हज़रत क़ाज़ी मुजाहिदुल इस्लाम क़ासमी (रह0) ने दारुल उलूम मऊनाथ भंजन, यू0पी0 में आरंभिक शिक्षा प्राप्त की, सन् 1951 ई0 (हिजरी 1370) से सन् 1955 ई0 (हिजरी 1374) तक दारुल उलूम देवबन्द में उच्च शिक्षा हासिल की, मौलाना सैय्यद हुसैन अहमद मदनी (रह0) से आपने बुख़ारी, अल्लामा मुहम्मद इब्राहिम बलयावी (रह0) से मुस्लिम, मौलाना एजाज़ अली (रह0) से तिर्मिज़ी पढ़ी। आप (रह0) ने अल्लामा मौलाना अब्ुदल हफ़ीज़ बलयावी (रह0), मौलाना मुहम्मद हुसैन बिहारी (रह0), मौलाना फ़ख़रुल हसन मुरादाबादी (रह0), मौलाना बशीर अहमद खाँ (रह0), मौलाना नसीर अहमद खाँ (रह0) और मौलाना मेराजुल हक़ (रह0) से विभिन्न विषय की किताबें पढ़ीं। लेख, निबन्ध एवं लेखन के मामले में आप (रह0) के ख़ास मौलाना सैय्यद मुनाज़िर हसन गिलानी (रह0) थे।

क़ाज़ी साहब (रह0) अपने समय के महान धार्मिक विद्वानों से विचार विमर्श किया और इस्लामी विषयों में श्रेष्ठता एवं ज्ञान हासिल किया। जिसकी अभिव्यक्ति आप (रह0) के भाषणों व लेखनी में मिलती है। आप (रह0) धार्मिक विषय में मज़बूती से पकड़ रखते थे और इन धार्मिक विषय पर विशेषता प्राप्त थी।

शैक्षिक सेवाएं:

क़ाज़ी साहब (रह0) पढ़ने और पढ़ाने के पवित्र कार्यों के साथ जीवन प्रयत्न जुड़े रहे और अनेक विषयों पर अपनी अभिव्यक्ति और भाषण देते रहे, लेकिन आप (रह0) ने अध्यापन के विभाग को बाकायदा तौर पर भी अपनाया। देवबन्द से पढ़ाई पूरी करने के पश्चात हज़रत मौलाना हुसैन अहमद मदनी (रह0) के आदेश पर क़ाज़ी साहब (रह0) जामिया रहमानी मुंगेर (बिहार) तशरीफ ले गये। यहां आप (रह0) ने लगभग आठ वर्ष तक पठन-पाठन के काम को अंजाम दिया। आप (रह0) ने अरबी की प्रारंभिक पुस्तकों से लेकर उच्च शिक्षा की पुस्तकों का पढ़ने पढ़ाने का कार्य किया और अबू दाऊद वगैरह के पाठ आप (रह0) के ज़िम्मे रहे।

रचनात्मक और संगठनात्मक सेवाएं:

आप (रह0) की मिल्ली व तंज़ीमी सेवाएं बहुत हैं। कुछ महत्वपूर्ण सेवाएं प्रस्तुत की जा रही हैं।

·        यकुम शव्वाल 1384 हिजरी को मौलाना सैय्यद मिन्नातुल्लाह रहमानी की इच्छा पर इमारते शरीआ की प्रबन्धन और क़ज़ा का पद स्वीकार करते हुए फुलवारी शरीफ़ पटना तशरीफ़ फ़रमा हुए। यहां आप (रह0) ने तीन हैसियतों से काम कियाः

1-        सन् 1962 ई0 से सन् 1965 ई0 नाज़िम (प्रबन्धक) की हैसियत से।

2-        सन् 1962 ई0 से वफ़ात तक क़ाज़ी शरीअत व क़ाज़ीयुल क़ज़ा की हैसियत से।

3-        12 रबीउल अव्वल 1420 हिजरी मुताबिक 24 जून सन 1990 ई0 से वफ़ात तक नायब अमीरे (उप सभापति) शरीअत की हैसियत से।

·        हज़रत मौलाना सैय्यद मिन्नतुल्लाह रहमानी की तहरीक पर हज़रत क़ारी मुहम्मद तैय्यब साहब (रह0) के ज़रिये सन् 1972 ई0 में आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की स्थापना हुई। जिसके ताने बाने के बुनने में क़ाज़ी मुजाहिदुल इस्लाम क़ासमी (रह0) शुरू से शरीक रहे और दारुल उलूम देवबन्द में आयोजित इसके प्रथम सभा की तैय्यारी के लिए एक महीना दारुल उलुम में निवास किया। 22 अप्रैल सन् 2000 ई0 को क़ाज़ी साहब (रह0) को मौलाना अली मियां नदवी (रह0) के देहान्त के बाद बोर्ड का सभापति (सदर) नियुक्त किया गया। तीन साल से भी कम अरसे तक आप (रह0) बोर्ड के सदर रहे, क्योंकि उम्र ने वफ़ा नहीं की।

·        आप (रह0) की तहरीक पर बिहार में मौलाना सज्जाद हास्पिटल स्थापित करने की योजना बनाई गयी और क़ाज़ी साहब (रह0) ने अपने साथियों की सहायता से इस काम को पूर्ण किया गया।

·        फुलवारी शरीफ़ में मौलाना मिन्नतुल्लाह रहमानी टेक्निकल इन्सिटीटियूट की स्थापना के लिए आवश्यक माली व अफरादी संसाधनों की प्राप्ति भी क़ाज़ी साहब (रह0) के परिश्रम की देन है।

एजूकेशनल कैम्प का सेहरा भी आप के सर है।

·        मई सन् 1992 ई0 में आप (रह0) ने आल इडिंया मिल्ली कौंसिल मुम्बई के आयोजित सभा 23-24 मई सन् 1992 ई0 को कौंसिल की कार्यवाही की।

·        आपने नवयुवकों की शिक्षा के लिए अलमाहद आली लित्तदरीब फ़ील क़ज़ा का एक ऐसा महत्वपूर्ण विभाग की स्थापना की जो नवयुवकों के निर्माण और अनुसंधान एवं सम्पादन की महत्वपूर्ण सेवाएं अंजाम दे रहा है।

·        आपके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण एवं महान कारनामा इस्लामिक फ़िक़्ह एकेडमी की स्थापना है। इस इदारे ने अल्प अवधि में ही मध्य एशिया में अपनी योग्यता की पहचान स्थापित कर ली और उलेमा व फ़ुक़हा के अन्दर अनुसंधान व सम्पादन और वाद-विवाद की प्रेरणा पैदा कर दी। और देखते ही देखते देश में धार्मिक विचार-विमर्श की क्रांति पैदा हो गयी।

·        देश के सम्मानित व्यक्तियों और विभिन्न विद्वानों का ज्ञानवर्धक एवं अनुसंधान सभाए सम्पन्न होने लगी, जिसने हज़रत इमाम अबु हनीफा (रज़ि0) की मजलिस की याद ताज़ा कर दी, आज इस इदारे को इस्लामी दुनिया में एक प्रमाणिक एवं भरोसेमंद इल्मी व फ़िक़्ही इदारा स्वीकार किया जाने लगा है। इस्लामिक फ़िक़्ह एकेडमी क़ाज़ी साहब (रह0) की विद्ववत्ता और कठोर परिश्रम का परिणाम है।

·        आपने देश और विदेश में कई महत्वपूर्ण अवसरों पर अपनी ज़िम्मेदारियों को बड़ी कुशलता के साथ निभाया और उम्मत का मार्गदर्शन करते रहे जिनमें कुछ महत्वपूर्ण पद शामिल है।

·        सदस्य (मेंम्बर) इस्लामिक फ़िक़्ह एकेडमी मक्का मुकर्रमा, एक्सपर्ट इन्टरनेशनल इस्लामिक फ़िक़्ह एकेडमी जद्दा, सदस्य (मेंम्बर) अल मजमउल अल इल्मी अल आलमी दमिश्क, सदस्य एजाज़ी अल हैय्यातुल ख़ैर इस्लामिया कुवैत, मेंम्बर शरीआ बोर्ड आफ़ अमीन इस्लामिक फाइनानसियल बैंगलोर, सदस्य (मेंम्बर) गवर्निंग बाड़ी आफ़ इन्स्टीटियूट आफ़ औब्जैक्टीव स्टडीज।

·        क़ाज़ी मुजाहिदुल इस्लाम (रह0)  की मिलनसार स्नेही व्यक्त्ति्व ने न सिर्फ शैक्षणिक और चिन्तनीय क्षेत्रों में उम्मत का मार्गदर्शन की नीवं प्रदान की, बल्कि अन्य कल्याणकारी, निर्माण कारी कार्यों में जैसे अस्पताल, टेक्निकल इदारे की स्थापना के माध्यम से मानव की सेवा में भी अपना आचरण अदा किया।

प्रकाशन एवं रचनाएँ (सम्पादन):

क़ाज़ी साहब की सेवाएं बहुमुखी थीं चूंकि आपने जहां विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिभाशाली सेवाएं प्रदान की हैं, वहीं सम्पादन एवं प्रकाशन के क्षेत्र में भी कुशलतापूर्वक सेवाएं प्रदान की। आपकी लेखनी से दसियों पुस्तकें वजूद में आयीं, जिनमें कुछ प्रमुख्य किताबें निम्नलिखित हैंः

1-        इस्लामी अदालत

2-        सिनवानुल क़ज़ा व उनवानुल फ़तावा (तहक़ीक़)

3-        नये और जदीद मौज़ूआत पर दसियों इल्मी मुजल्लात

4-        निज़ामुल क़ज़ा इस्लामी

सम्मान एवं एवार्डः

क़ाज़ी साहब की सर्वश्रेष्ठ कार्यशैली की वजह से आपको कई एवार्ड दिये गये नीचे कुछ सम्मान के नाम बयान किये जाते हैं:

·        अल अमीन एजूकेशन्स ट्रस्ट की तरफ़ से कम्यूनिटि लीडरशिप एवार्ड

·        इन्सटीटियूट आफ औब्जैक्टीव स्टडीज की तरफ़ से शाह वलीउल्लाह एवार्ड पेश किया गया।

·        ए0एफ0एम0 (अफमी) यानी अमेरिकन फेडरेशन्स आफ मुस्लिम की तरफ़ से मौलाना सैय्यद अबुल हसन अली नदवी एवार्ड मिला।

·        अहकामे शरीअते इस्लामी की सकारात्मक कार्य के लिए क़ायम हुकूमत कुवैत की आला मुशावरती कमेटी की तरफ़ से फ़िक़्ही एवार्ड दिया गया।

·        मेसी (एम0ई0ए0एस0आइ0) की तरफ़ से सर्वश्रेष्ठ इस्लामी शख्सियत एवार्ड दिया गया।

·        हुकूमत मराकश की तरफ़ से सर्वश्रेष्ठ इस्लामी और इल्मी खि़दमत पर गोल्ड मैडल दिया गया। जो उस दिन एकैडमी के दफ़्तर को प्राप्त हुआ जिस दिन क़ाज़ी साहब की वफ़ात हुई।

यात्राएँ (सफ़र):

क़ाज़ी साहब ने कई देशों की यात्राएं की जिसमें सऊदी अरब, क़तर, बहरैन, कुवैत, अमेरिका, बरतानिया, पाकिस्तान, बंग्लादेश, ईरान, रूस की आज़ाद मुस्लिम जमहूरी रियासतें, मराकश और दक्षिण अफ्रीक़ा शामिल हैं। आपने दो हज किये, पहला हज सन् 1969 ई0 में और दूसरा यात्रा हज सन् 1996 ई0 में किया।

देहान्तः

जुमेरात 20 मोहर्रम 1423 हिजरी मुताबिक़ 4 अप्रैल सन् 2002 ई0 को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में सात बजकर पाचं मिनट पर देहान्त हो गया।

इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजेऊन

RRR

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