स्कॉलर्सदोहा, क़तर, 28/02/2022
इस अकादमी के निर्णय प्राचीन धर्मी
और आधुनिक उपकारक के व्यापक हैं
‘’हमारा यह दौर मालूमाती इन्क़लाब, इल्मी
श्रेष्ठता,
अविष्कारों की अधिकता’’ तेज़ गति से विकास, पेश
आने वाले नए नए समस्याओं के ढेर, कठिनाइयों में आए दिन वृद्धि और मामलों
व सन्धियों के नएपन की दृष्टि से प्रमुख है जिनके बारे में अतीत में कोई कल्पना तक
न थी और न ही हमारे महान फ़िक़्ही भंडार का इससे कोई संबंध, सिवाए
इसके कि आम उसूल, पूर्ण नियमावली और शरीयत के उद्देश्य के बारे
में थोड़ा-थोड़ा ज़िक्र आया, इन हालात ने हमारे दौर के लेखकों को नयी दिशाओं
द्वारा उन मसाइल पर सोच विचार करने पर तैयार किया, चाहे ये इज्तिहाद
इन्शाई हों या इज्तिहाद इन्तिक़ाई।
लेकिन ये नए पेश आने वाले समस्याएं
पेचीदा और नाज़ुक होते हैं। इन के बारे में दिए गए फ़तवों का प्रभाव चाहे नकारात्मक हो
या सकारात्मक,
केवल मुस्लिम समुदाय पर ही नहीं बल्कि पूरी मानवता पर पड़ते हैं।
अतः ऐसे अवसर पर यह नहीं होना चाहिए कि किसी क़ौम या किसी जमाअत के भाग्य व अंजाम को
किसी एक व्यक्ति के फ़तवे से बांध दिया जाए जो कभी सही फ़तवा दे और कभी ग़लत फ़तवा दे, बल्कि
यह इस प्रकार के सवालों व समस्या को ज्ञानात्मक संस्थानों में चर्चा का विषय बनाया
जाए ताकि वे उन की वजह की जांच पड़ताल, फ़िक़्ह मआल, फ़िक़्ह
तन्ज़ील और सैंकड़ों साधनों में चिंतन मनन और बहस व तहक़ीक़ के बाद इस सिलसिले में सही
और पूर्ण फ़तवा दे सके, ख़ास तौर से हमारे इस दौर में जिसमें आम सहमति
एक मुश्किल और कठिन काम बन गयी है।
इसी परिपेक्ष्य में इन्टरनेशनल और
नेशनल फ़िक़्ह अकेडमियों की स्थापना की धारणा सामने आयी। अतएव सबसे पहले जामेअ़ अज़हर
के अंतर्गत ‘‘मजमउल
बहूसुल इस्लामिया’’ सन् 1961 ई0 में स्थापित हुआ, फिर
राबता आलमे इस्लामी के अन्तर्गत सन् 1977 ई0 में ‘‘अल मजमउल फ़िक़्ही
अल इस्लामी’’
स्थापित हुई। फिर (व्प्ब् मुनज्ज़मातुल मोतमर अल इस्लामी) के
अन्तर्गत सन् 1981 ई0 में इन्टरनेशनल इस्लामिक फ़िक्ह अकेडमी स्थापित की गयी और फिर
देशों या अल्प संख्यकों के साथ ख़ास क्षेत्राय फ़िक़्ह अकेडमियां स्थापित हुईं। किसी
एक देश के साथ ख़ास क्षेत्राय फ़िक़्ह अकेडमियों में सबसे महत्वपूर्ण ‘‘इस्लामिक
फ़िक़्ह अकेडमी (इन्डिया) है जिसकी स्थापना 1988 ई0 में रखी गयी जिसने कई महान उद्देश्यों
को व्यवहार में लाने का अपना लक्ष्य बनाया।
इस महान व विशिष्ठ अकेडमी से निरंतर
सम्पर्क में रह कर, इसके कुछ सेमिनारों और कान्फ्रेंसों में भाग लेकर
और इसके तै किए हुए फ़ैसलों और सिफ़ारिशात और फ़तवों को पढ़ने के बाद हमने यह देखा कि यह
अकेडमी फ़िक़्ही मसाइल के मैदान में और हिन्दुस्तानी मुसलमानों की ओर से उसके यहां प्रस्तुत
की जाने वाली मुश्किलात को हल करने में महान भूमिका अदा कर रही है। इस देश में मुसलमानों
की संख्या का अन्दाज़ा 20 करोड़ से अधिक का है जो हिन्द व पाक के दूर दूर क्षेत्रों में
बिखरे हुए हैं।
यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि
फ़िक़्ह अकेडमी ने जो फ़िक़्ही समस्याएं हल करके पेश किए हैं इनमें शरअ़ी बुनियादों को
सामने रखा है और उनमें शरीयत के उद्देश्य को स्पष्ट तरीक़े पर आश्रित रखा गया है। निःसन्देह
अकेडमी के ये फ़ैसले प्राचीन, भले और आधुनिक लाभ के संग्रह हैं।
प्राचीन सालेह इस हैसियत से कि यह इज्तिहाद इन्तिक़ाई द्वारा अपना कर व वरीयता के बाद
फ़िक़्ही इज्तिहाद से जुड गया है और आधुनिक लाभकारी इस विश्वास से कि हिकमत मोमिन की
खोई हुई धरोहर है वह जहां भी मिले उसका हक़दार वही है।
फ़िक़्ह अकेडमी की मुख्य विशेषताओं
में से मुसलमानों को एकता के सूत्रा में बांधना और राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम समुदाय
के विद्वानों को आपस में जोड़ना भी है अतएव विभिन्न धर्मों के फ़िक़्ह और सोच रखने वाले
उलेमा फ़िक़्ह अकेडमी के सेमिनारों में जमा होते हैं और प्रस्तुत होने वाले विषयों पर
वाद-विवाद और चर्चा करते हैं और विभिन्न ख़ास विषयों से संबंधित विशेषज्ञों से मसाइल
की विश्लेषण में मदद भी हासिल करते हैं और यह सब कुछ शिक्षात्मक वातावरण में होता है
जिसमें समान्य हितों की प्राप्ती की इच्छा और भाईचारा व प्रेम का वातावरण छाया रहता
है।
सारांश यह कि इस्लामिक फ़िक़्ह अकेडमी
(इन्डिया) इन्टरनेशनल फ़िक़्ह अकेडमियों की कोशिशों में एक मुबारक वृद्धि है। और फ़िक़्ह
इस्लामी की सेवा एक महान कोशिश और सामूहिक इज्तिहाद के अध्याय में मुल्यवान धरोहर है
जिससे न केवल यह कि हिन्दुस्तानी मुसलमान लाभान्वित हो रहे हैं बल्कि पूरा इस्लामी
जगत लाभ उठा रहा है इस लिए कि इसने फ़िक़्ह इस्लामी के नए आसमान खोल दिए हैं। सामूहिक
इज्तिहाद की भावना को सार्वजनिक किया और मुसलमानों को पेश आने वाले मसाइल व कठिनाइयों
के लिए गहरी सूझ बूझ पैदा की है।
मैं दुआ करता हूं कि अल्लाह तआला
इस्लामिक फ़िक़्ह अकेडमी (इन्डिया) को और अधिक सौभाग्य प्रदान करे और इसके क़दमों को
सत्य और भलाई के रास्तों पर जमाए रखे और इसके ज़िम्मेदारों की उम्र में बरकत प्रदान
करे कि वे मुस्लिम समाज के लिए और अधिक इल्मी, फ़िक़्ही और वैचारिक सेवाएं प्रस्तुत
कर सकें और अल्लाह तआला उन तमाम लोगों को भी भलाई प्रदान करे जो इसमें हिस्सा लें और
इल्म व फ़िक्र और माल व पद के द्वारा इसका सहयोग करें।
डाकटर अली मोहियुद्दीन अल क़ुर्रह
दाग़ी
(महासचिव इत्तिहाद आलमी बराए मुस्लिम
स्कालर्स व
उपाध्यक्ष यूरोपी कौन्सिल बराए बहुस
व इफ़ता)
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